"मैं मानती हूँ कि गुफा के अंत में हमेशा रौशनी होती है. काली-अँधेरी रात के बाद सवेरा ज़रूर होता है. हम सब फ़िलहाल रौशनी की ओर बढ़ रहे हैं. ग़म की इस लहर के बाद खुशियों का समंदर ज़रूर आएगा. हमें यह समझना होगा की वो हर छोटी से छोटी चीज़ जो हम करते हैं कितनी स्पेशल है, सुबह की लोकल ट्रेन में सफ़र से लेकर शाम की टपरी वाली चाय तक सबकुछ कितना ख़ास है. इस महामारी ने हमें यही सिखाया है कि खुशियाँ मिल सकती हैं छोटी से छोटी चीज़ों में भी, अगर हम तैयार हों उन्हें खोजने के लिए,"
यह कहना था सेलेब्रिटी इंटरव्यूअर और होस्ट अनुपमा सिंह का जब मैंने उनसे वर्तमान स्थिति के बारे में सवाल पूछा. अनुपमा सिंह मुझे उनके आत्मविश्वास, हिम्मत, बेबाकी और खूबसूरती से हमेशा प्रभावित करती आई हैं. उनका यह जवाब इस बात की अलामत है कि वे कितनी अनुभवी और आला कलाकार हैं. वो उम्मीद से भरी हुई हैं और इसलिए मैं उनका मुरीद हूँ. मैंने उनके साथ एक दो ऑफिशियल प्रोजेक्ट्स पर काम भी किया है और इससे पहले उनका एक और इंटरव्यू ले चुका हूँ. पिछले और इस इन्टरव्यू में फ़र्क सिर्फ़ इतना है कि अब उनके जवाबों में और अधिक धार, स्पष्टता, सटीकता और निडरता आ गई है. भागवत गीता में मैंने पढ़ा था कि "गीता का ज्ञान गीता में ही निहित है" और इसलिए बॉलीवुड इंडस्ट्री से जुड़ी कुछ बातों को जानने के लिए मैंने सीधे इंडस्ट्री के अंदर काम कर रही शख्सियत से ही बात करना मुनासिब समझा. अनुपमा सिंह सलमान खान, जॉन अब्राहम, अली फज़ल, जैकी श्रोफ, जॉनी लीवर, बॉबी देवल, कैलाश खैर, यामी गौतम, विकी कौशल, मुकेश खन्ना, सोनाक्षी सिन्हा, डायना पैंटी आदि नजाने कितने बॉलीवुड अदाकार और अदाकाराओं का इंटरव्यू ले चुकी हैं और इंडस्ट्री बेहद करीब से जानती हैं. पढ़िए उनका यह तार्किक और सधा हुआ इंटरव्यू जहाँ मैंने उनसे कोरोना से लेकर मेंटल हेल्थ और नेपोटिज्म से लेकर ड्रग सिंडिकेट आदि तक हर मुद्दे पर चर्चा की है. यह एक टेलीफोनिक बातचीत थी और मुझे यह करते हुए बड़ा मज़ा आया. आप भी पढ़िए -
सवाल - कोरोना और देशभर में हुए लॉकडाउन को छह से सात महीने का समय हो गया है. आप इन हालातों में कैसे ख़ुद को संयमित और शांत रख रही हैं?
जवाब - जब लॉकडाउन शुरू हुआ तो मुझे भी लगा कि यह अचानक क्या हो गया क्योंकि हमें अब ख़ुद के साथ रहने की आदत नहीं है. हम हमेशा बिज़ी रहते हैं, दूसरों से मुलाक़ात करते हैं. सच बताऊँ तो हमें खुद के भावों(इमोशंस) से भागने की आदत हो गई थी. पर जब खुद के साथ अकेले रहने का वक़्त मिला तो इस बात का एहसास हुआ कि मैं कितनी आगे आ गई हूँ अपनी ज़िन्दगी में, कितना कुछ हासिल कर चुकी हूँ, कितने ऐसे सपने थे जिन्हें मैंने पूरा कर लिया है. अपने आप को शांत और संयमित रखने के लिए खुद को यह बताना ज़रूरी था कि मैं कितनी खुशकिस्मत हूँ जो इतनी बड़ी महामारी के बीच भी सुरक्षित हूँ. और मैंने यही किया. जब आप जान लेते हैं कि आप बड़े खुशकिस्मत हैं, आपने आप ही आप हर चीज़ के लिए शुक्रगुज़ार हो जाते हैं. आपमें अपने आप एक विनम्रता(मॉडेस्टी) आ जाती है. सोश्यल मीडिया ने मैं कहूँगी इस मसले में मेरी बहुत ज़्यादा मदद की, थ्रोबैक पिक्चर्स को देखकर मालूम हुआ कि मैंने अपनी ज़िन्दगी में, अपनी मेहनत और लगन से कितना कुछ पाया है. साथ ही इस बात का एहसास कि इतनी बड़ी महामारी के बीच मैं, और मेरा परिवार सुरक्षित हैं ने भी मेरी हिम्मत बंधाए रखी है. सही ही कहा गया है - "जान है तो जहान है." , "मन चंगा तो कटौती में गंगा"
सवाल - मुंबई से कब लौट कर आईं और अब वापस जाने के बारे में आपका क्या विचार है? क्या आप मुंबई लौट कर आ चुकी हैं?
जवाब - लॉकडाउन लगने के बाद भी मैंने अपना काफ़ी समय मुंबई में ही बिताया और उसके बाद फिर में अपने घर गई थी डेढ़ महीने के लिए और अब वापस आ गई हूँ क्योंकि मुंबई में ना कुछ बात है, मुंबई आपसे मेहनत करवाता है, मशक्कत करवाता है, आपको स्थिर नहीं बैठने देता, आपसे काम करवाता है. दूसरी ओर घर आपको सुकूँ के पलों से मिलवाता है. मैं लौट आई हूँ क्योंकि मुझे काम करना है, थमना नहीं है. और जैसा कि फ़िल्म हाफ टिकिट का वो मशहूर गीत कहता है - "ये है मुंबई मेरी जान"
सवाल - आप एंकर/होस्ट/इंटरव्यूअर हैं और आपका सारा काम लाइव इवेंट्स में होता है. कोरोना काल में किस तरह से काम कर पा रही हैं? स्टेज बदल गया है, क्या भावनाएं भी बदली हैं?
जवाब - कोरोना काल में बहुत से लाइव स्ट्रीम्स किये, लाइव वीडियोज़ किये, लाइव इंटरव्यू भी लिए. ज़ूम एप्लीकेशन ने मेरी काफी मदद की. कई सारे कॉर्पोरेट शोज़ भी मैंने लाइव स्ट्रीम के ज़रिये किये मगर इमानदारी से कहूँ तो "आई मिस बींग ऑन स्टेज" क्योंकि मैं हमेशा कहती हूँ "माय स्टेज, माय लाइफ" और मैं अपनी लाइफ मिस करने लगी हूँ अब(हँसते हुए) स्टेज की जो सामूहिक(कलेक्टिव) एनर्जी होती है, वो मेरे लिए बहुत ज़्यादा ज़रूरी होती है. मैं स्टेज को, लोगों को, उस हलचल, उस शोर-गुल, उस चहलपहल को बहुत मिस करती हूँ. इन सब की कमी मुझे हर रोज़ खलती है.
सवाल - मेंटल हेल्थ एक बहुत बड़ा मुद्दा है और पिछले कुछ दिनों से इस मुद्दे ने बहुत अधिक तूल पकड़ लिया है. इंदोर में एक टीवी एक्ट्रेस, सुशांत सिंह राजपूत की मैनजर और फिर उनका खुद का खुदकुशी कर लेना सबको हैरान करता है और सकते में डाल देता है. आप अपनी मानसिक सेहत को दुरुस्त कैसे रखती हैं? दूसरों को इस मामले में क्या सलाह देना चाहेंगी?
जवाब - मेंटल हेल्थ बहुत बड़ा मुद्दा होना भी चाहिए क्योंकि हम ना एकतरफा ज़िन्दगी जी रहे हैं जहाँ पे हमारी लाइफ सिर्फ हमारे काम, हामरे करियर के बारे में है, हम एक सम्पूर्ण(होलसम) जीवन नहीं जी रहे हैं और इसलिए मेंटली डिस्टर्ब हो जाते हैं. बहुत लोग मेंटली डिस्टर्बड हैं. अकेलापन है, काम का बर्डन है, हमारी इंडस्ट्री बहुत तेज़ी से बदल रही है तो जब तक हम कुछ समझते हैं वो बदल जाता है. तो बदलते दौर के साथ सामंजस्य(कोओर्डिनेशन) बैठाना बड़ा मुश्किल हो गया है. मैं अपनी मेंटल हेल्थ को बेहतर बनाए रखने के लिए डायरी लिखती हूँ, रोना आता है तो खुल के रोती हूँ और आंसुओं को, अपने भावों को दबाती नहीं हूँ. दूसरा मैं यह भी कहना चाहूंगी कि ज़िन्दगी में एतबार, विश्वास बहुत बड़ी चीज़ है - आपके जीवन में हमेशा कोई ना कोई ऐसा होना चाहिए जिसपर आप विश्वास करते हों. सच है कि अकेलेपन का कोई इलाज नहीं है लेकिन अगर आप खुद पर भरोसा करेंगे, खुद को क़ुबूल करेंगे तो चीज़ें ज़रूर अच्छी होंगी या बेहतर होने की ओर बढेंगी. मैं सभी को यही सलाह दूँगी कि अपने इमोशंस को दबाइए मत, उन्हें बाहर आने दीजिये. गुस्सा हैं तो गुस्सा होइए, रोना है तो रोइए, हंसना है तो खुल कर हंसिये. ज़िन्दगी का यह पाठ फिल्म डियर ज़िन्दगी के डॉक्टर जहाँगीर खान(शाहरुख़ खान) से समझिये. डिप्रेशन कभी एक दिन में नहीं होता, डिप्रेशन इस दी कंटीन्यूअस सप्रेशन ऑफ़ इमोशंस. इसलिए मैं अपने इमोशंस को जीती हूँ, अच्छी किताबें पढ़ती हूँ, अच्छे गाने सुनती हूँ, फिल्में देखती हूँ, मनचाहा खाना खाती हूँ और कोशिश करती हूँ खुद को स्वीकार करके खुद को बदलते रहने की.
सवाल - बॉलीवुड में नेपोटिज्म है या नहीं? ड्रग सिंडिकेट के मामले पर क्या कहना चाहेंगी?
जवाब - मुझे नहीं लगता कि बॉलीवुड में नेपोटिज्म है क्योंकि यह कोई ऑर्गनाइज्ड इंडस्ट्री नहीं है. हाँ यहाँ पर फेवरेटिज्म है और यह तो हर जगह है, क्योंकि यह मानव प्रवत्ति है - ह्यूमन नेचर. और यह सिर्फ ऊंचे स्तर पर नहीं है, हर स्तर पर है. इसमें सुधार तभी होगा जब इंडस्ट्री के भीतर के लोग आउटसाइडर्स के प्रति थोड़े और इमानदार, परोपकारी और मददगार हो जाएँगे. मुझे लगता है कि किसी के भी पास अगर क्षमता है तो वो अपने बच्चे को ही आगे रखेगा, अपनों के लिए ही कुछ करेगा. किसी ने भी सारी ज़िन्दगी इसलिए मेहनत नहीं की कि वह किसी और के बच्चे को स्टार बनाए. तो नेपोटिज्म नहीं है, फेवरेटिज्म है और हल लेवल पर है. इसके लिए कुछ चार-पांच लोगों को निशाना बनाना मेरी नज़र में सही नहीं. रही ड्र्रग्स की बात तो यह तो पूरे देश का मुद्दा है. सच कहूँ तो ना मैंने किसी को ड्रग्स लेते आज तक देखा है, ना मैं किसी को जानती हूँ, ना मेरी जानकारी में कोई है. बस इतना कहूँगी कि मुंबई में सब आज़ाद हैं और यह आपके ऊपर है कि आप क्या चुनते हैं. अपनी बात करूँ तो मैं कभी भी उन पार्टियों में नहीं जाती जिनका सम्बन्ध मेरे काम से नहीं है. "दिस इस हाउ आई वर्क"
सवाल - बॉलीवुड को भला-बुरा कहा जा रहा है. एक कथित राष्ट्रवादी फिल्म अभिनेत्री ने कहा है कि इंडस्ट्री के 90 प्रतिशत लोग ड्रग्स लेते हैं. आप इसपर कुछ कहना चाहेंगी?
जवाब - ये जो कथित अभिनेत्री हैं जो इंडस्ट्री के बारे में कुछ भी कहती रहती हैं, उनका कोई पर्सनल एजेंडा है, वो अपने पर्सनल लेवल पर बात करती हैं. बॉलीवुड को 100 साल हो गए हैं. और अगर कोई इंडस्ट्री 100 इयर्स सरवाईव करती है तो निश्चित ही उसमें 80-90 प्रतिशत(परसेंट) रचनात्मकता है, एकता है, दोस्ती है, अच्छाई है. यह इंडस्ट्री हज़ारों लोगों को रोज़गार देती है. अच्छे-बुरे लोग हर जगह होते हैं लेकिन इससे इंडस्ट्री अच्छी या बुरी नहीं होती. बुरे लोग हर फील्ड मंजन हैं, शायद यहाँ भी होंगे लेकिन मुझे बहुत दुःख होता है जब कोई मेरी इंडस्ट्री को भला-बुरा कहता है क्योंकि यह मेरे परिवार जैसी है और अगर यह इतनी बुरी होती तो मैंने अपनी ज़िन्दगी के सात साल इसे नहीं दिए होते. मैं हिंदी सिनेमा से मुहब्बत करती हूँ और मैं यह समझती हूँ कि इस इंडस्ट्री का हर तरह से हमारे देश के विकास में भी योगदान है हमेशा से ही लोग आते रहे हैं, इल्ज़ाम लगाते रहे हैं, अपना उल्लू सीधा करते रहे हैं लेकिन इससे सच्चाई परिवर्तित नहीं हो सकती.
सवाल - हमेशा इतनी कॉंफिडेंट, फिट और फ्रेश कैसे रहती हैं? क्या कोई किताब, फिल्म, गीत या व्यक्ति है जो आपको हमेशा मोटिवेटेड रखता/रखती है?
जवाब - मैं सकारात्मकता(पाजिटिविटी) में विश्वास रखती हूँ क्योंकि मैंने अपनी ज़िन्दगी के अनुभव से, तजुर्बे से एक ही चीज़ सीखी है कि - ख़ुशी ही ख़ुशी लाती है. तो मैं हमेशा खुश रहने की कोशिश करती हूँ, बहुत ज़्यादा म्युज़िक सुनती हूँ और बहुत ज़्यादा किताबें पढ़ती हूँ. जैसे फिलहाल मैं ऑपेरा विनफ्रे की "व्हाट आई नो फॉर श्योर" पढ़ रही हूँ. डांस करने का मन होता है तो पंजाबी गाने सुनती हूँ, दुखी होती हूँ तो ग़ज़लें सुनती हूँ, प्यार महसूस करती हूँ तो नब्बे के दशक का संगीत सुनती हूँ. और मैं हमेशा यह सोचती हूँ कि कोई आपको देखकर ज़िन्दगी जीने का तरीका सीख रहा होगा/होगी तो आप कभी भी बेकार की चीज़ों को लेकर दुखी नहीं हो सकते. आपका परिवार आपकी एनर्जी पर अपना जीवन जीता है और इसलिए आपका जोशीला बना रहना और ज़रूरी हो जाता है. मैं ज़िन्दगी में "जो हुआ सो हुआ" की फिलोसफी को मानती हूँ - जैसे वो कहावत है "रात गई, बात गई" क्योंकि जो हो गया उसके बारे में सोचकर आप अपना वर्तमान और भविष्य दोनों ख़राब करें इसमें कोई समझदारी नहीं है. ऑपेरा विनफ्रे, विल स्मिथ, सुष्मिता सेन, रेखा जी और लूइस हे मेरे आल टाइम इन्स्पिरेशंस हैं.
सवाल - घर के कामों में लोगों की दिलचस्पी बढ़ी है, लोग घर में रहकर घर के काम सीख रहे हैं. आपने क्या नया सीखा?
जवाब - हाँ! मैंने इन दिनों में कुकिंग करना शुरू किया और यह करते हुए मुझे एहसास हुआ कि मैं इस काम में वाकई बेहद अच्छी हूँ. मैं आए दिन नई-नई चीज़ें बनाती और खाती हूँ. मेरे लिए कुकिंग भी एक तरह का मेडिटेशन है. मैं यह करती हूँ क्योंकि यह करके मुझे अच्छा महसूस होता है.
सवाल - वरुण ग्रोवर से लेकर आलिया भट्ट और कुबरा सेट से लेकर आप तक सभी के पास बिल्लियाँ हैं. इस अनूठे सम्बन्ध के बारे में कुछ बताइए.
जवाब - दुनिया में दो तरह का प्यार होता है - एक जहाँ पर किसी चीज़ से बहुत ज़्यादा प्यार करते हैं और दूसरा जहाँ आपको बहुत सारा प्यार चाहिए होता है. जिन्हें प्यार चाहिए होता है वो कुत्ते पालते हैं और जो लोग ज़िन्दगी में आपको प्यार कर सकते हैं, बिना इस बात की परवाह किये कि आप उन्हें पलटकर प्यार करते हैं या नहीं वो लोग बिल्लियाँ पालते हैं. यह एक अजीब ऑबज़र्वेशन है मेरा मगर यह है. बिल्लियाँ आपको एक बड़े अजीब तरीके से समझती हैं, बड़े ही अलहदा तरीके से प्यार करती हैं और वो आपको अपना एक स्पेस भी देती हैं. मतलब आपको उनकी ज़्यादा देखभाल भी नहीं करनी पड़ती और साथ ही आपके पास एक पार्टनर होता है जो आपको गहराई से समझता है.
सवाल - हालाँकि मैं आपसे यह पहले भी पूछ चुका हूँ लेकिन आखिर में अपने अनुभव से बताइए - बॉलीवुड इंडस्ट्री आपके लिए क्या है?
जवाब - बॉलीवुड इंडस्ट्री मेरा घर है, मेरे सपनों की दुनिया है. यह वो जगह है जिसने मेरे सपनों को हकीक़त में बदला है, मेरे पंखों को उड़ान दी है. इसने मुझे दिल से अपनाया है और मैंने इसे अपनी जान से भी ज़्यादा चाहा है तो हाँ, ये इंडस्ट्री मेरे लिए मेरा घर है.
Keep Visiting!
This is amazing. I loved the way you describe bollywood. Respect.
ReplyDeleteAlso that ' Cat 'thing is wow. Well said. Wish you all the best and I have seen your work. You are a fire. Keep going. ����
Loved it. Keep going.
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteShe Is So Inspiring ����������������������
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