Sunday, 31 July 2016

युवाओं के नाम।


सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
ओ रे बिस्मिल काश आते आज तुम हिन्दुस्तान
देखते की मुल्क सारा ये टशन में, थ्रिल में है

आज का लौंडा ये कहता हम तो बिस्मिल थक गए
अपनी आज़ादी तो भैय्या लौंडिया के तिल में है

आज के जलसों में बिस्मिल एक गूंगा गा रहा
और बहरों का वो रेला नाचता महफ़िल में है

हाथ की खादी बनाने का ज़माना लद गया
आज तो चड्ढी भी सिलती इंग्लिशों के मिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

-पियूष मिश्रा(गुलाल फ़िल्म)


आवाम ये खुदगर्ज़ होती आ रही नज़र मुझे।
इंक़िलाब आयेगा न अब, मुस्तक़िल है डर मुझे।।
अशफ़ाक़ की, बिस्मिल की बातें दिल में कब समाएंगी?
गालिबन तब, चेहरे पर जब झुर्रियां पड़ जाएँगी।।

याद कर लो उस भगत को जिसने जाँ लुटाई थी,
तेईस में तन वारकर दीवानगी दिखाई थी।।
वीरता के रास्तों से घर आज़ादी आई थी।
थे निशाँ ज़न्जीर के और खून में नहाई थी।।

वीरता, जोश ओ उमंग अब है कहाँ मालूम है?
आज का युवा सुलभ, निहायती मासूम है।।
इख्तिलाफ़ी बन चुकी है एक लद इतिहास का
जुगाड़ ही सर्वोपरि है, सच यही है आज का।।

विवेक के आनंद में था जो वो विवेकानंद हुआ। 
आध्यात्म के महाकाव्य में एक अद्वतीय छंद हुआ।।
तीस में जाकर शिकागो विश्व में वह छा गया।
ज्ञान का पौरुष ही था जो महासभा को भा गया।।

अरे! अब दिखाते हो जो तुम सब ख़ाक है मर्दानगी।
है इतिश्री मूर्खता की, और झूठी शान/आधे ज्ञान की।।
जीत "Pubg" में ज़रूरी बाकी सब मंज़ूर है। 
सोश्यल मीडिया के हम, विकिपीडिया से दूर हैं।।

क्रांतिकारी आसमां से झांकते होंगे यहाँ,
देखने के मुल्क हमरा आज तक पहुंचा कहाँ?
देखेंगे के हर ही कोई राजनीति कर रहा।
देश पे कोई क्या मरेगा, देश अपना मर रहा।।

आज़ाद सा कोई नहीं, सब लूटने में लिप्त हैं।
सुखदेव जैसे युवा तो नशे में हैं, विक्षिप्त हैं।।
आज़ाद सारे भारतीय मज़हबों में कैद हैं।
दूसरों से क्या लड़ेंगे, आपस में ही फरेब हैं।।

माँ भारती के लोग सुन लो, देश ही एक धर्म है।
उत्थान करना है इसी का, सबसे ऊंचा कर्म ये।
हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई राष्ट्र की बिसात हैं।
अरे! कोई पूछे तो कहो - "हम भारतीय जात हैं।"

क्रांतिकारी, वीर, ज्ञानी लड़ गए और मर गए।
राष्ट्र को ज्वाला दिखा अंतिम चिता पर चढ़ गए।
अब हम भी ऐसा कुछ करेंगे, कम ही है संभावना
पर कुछ ना कुछ बिल्कुल करेंगे, दीजिये शुभकामना

क्रांतिवीर ना सही, थोड़ा सबल बन जाएं हम
जब बात आए देश की तब लोह से तन जाएं हम
उम्र से युवा हैं अब बस कर्म से हो जाना है,
दौर फ़िर विवेक का, वक़्त भगत सिंह का लाना है

Keep Visiting!

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