Sunday, 13 December 2015

मेरे पिता मेरी अभिव्यक्ति।


हर सर्जक कभी न कभी अपने पिता के बारे में ज़रूर लिखता है.

-श्रवण गर्ग


उनकी राह हमेशा कीलों, काँटों से ही भरी रही,
पर खिले रहे कोशिश के फ़ूल, सदा उमीदें हरी रहीं।।
कठिनाई हर मोड़ पे आई, लेकिन उनको रोक ना पाई।
मानव नहीं अकेला होता, जब हिम्मत हो परछाई।।

उनमें लड़ते रहने की है एक अनोखी शक्ति,
मेरे पिता, मेरी अभिव्यक्ति।।

जब वे पेड़ थे बड़े विशाल, तब सब ने ही छाया ली।
चंद टहनियां के कटते ही, ख़ुद को अकेला पाया जी।।
कुछ टहनी कट जाने से वे बिल्कुल नहीं थमे,
मज़बूती से, और जज़्ब से हर दिक्कत से लड़े।।

जिन लोगों ने ली थी छाया, वे सबसे पहले भगे,
स्वार्थी सब ही निकल गए, क्या बाहरी, क्या सगे।।
ͪमुश्किल हालातों में भी वे हँसकर डटे रहे,
बाबा छोटे हुए ना कभी, हमेशा बड़े रहे।।

लाख बुराई झेली उन्होंने, पर अच्छाई नहीं छोड़ी,
मेरे पिता मेरी अभिव्यक्ति।।

उनके लिए निराशा से भी नित्य जुड़ी एक आशा है,
गिरना, उठना, उठकर चलना जीवन की परिभाषा है।।
कहते हैं वे शून्य दरअसल मौका है ऊपर चढ़ने का,
खेल है चौसर का ये जीवन, हाथ हमारे पासा है।।

जब कभी शाम दुखी और रात अंधेरी होती हैं,
मेरे चारों ओर पिता की बात सुनहरी होती हैं।।
मुझसे पहले खुलती हैं जो, बाद मेरे बंद होती हैं,
पिता की आशावादी आँखें, पुत्र से छिपकर रोती हैं।।

पर भीतर की कोई पीड़ा, मुख पर उनके नहीं दिखती,
मेरे पिता मेरी अभिव्यक्ति।।

डगमगा जाता हूँ जब मैं, सीखों से उनकी संभलता हूँ,
"थोड़ा और" की इस दुनिया में, संतोष की राह पे चलता हूँ।।
वे कहते हैं- सुध लो आगे की, जो बीता सो भूलो,
भगवान रखे जिन हालातों में, उनमें रहना सीखो।।

उनके लिए किस्मत एक फ़ल है, और कर्म है भक्ति,
मेरे पिता मेरी अभिव्यक्ति।।

वे कहते हैं चंद रुकावटों से, ज़िन्दगी थम नहीं सकती,
मेरे पिता मेरी अभिव्यक्ति।।


इस कविता को फादर्स डे के अवसर पर राइज़िंग लिटेरा ग्रुप ने अपनी फेसबुक टाईमलाईन पर शेयर किया।


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