"सब कर रहा हूँ" के बीच,
"क्या कर रहा हूँ?" का ख़्याल आना ही,
मेरे "किये हुए" पर एक सवाल है...
यह सवाल है...
यह सवाल है मुझसे,
मेरे "नहीं किये हुए" का....
जो नहीं किया, वो नहीं किया,
क्योंकि वो करना था,
जो कर रहा हूँ...
जो "नहीं किया" है,
वो दुःख तो नहीं देता,
मगर हाँ कभी-कभी मलाल देता है....
मेरा हर "किया हुआ",
मुझमे देखा जा सकता है..., सतह पर.
और "नहीं किया हुआ"...ज़रा गहराई में....
मैं "सब कर रहा हूँ",
अपने "नहीं किये हुए" को,
भूल जाने के लिए,
या शायद, "किये हुए" को दोहराने के लिये....
शायद "सब करना" ही,
"क्या करूँ" जैसे सवाल को,
गहरा, घना और गहन बना देता है।
"क्या करूँ" का संघार "चुनने" से होगा..
मगर मुझे "चुनना" नहीं आता,
मुझे वो मुश्किल लगता है....
आसान है "सब करना",
और फंसे रहना,
"किया", "नहीं किया" के भंवर में....
आसान है हर पल परेशान रहना,
अपने "सब" से,
और कहते रहना के-
"सब कर रहा हूँ" के बीच,
"क्या कर रहा हूँ?" का विचार आना,
शायद, मेरे "किये हुए" पर एक सवाल है....
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