Sunday, 28 October 2018

नदामत में हम।



जान-ए-जहां तुझ से चाहत में हम।

नज़र नहीं मिलाते हैं लानत में हम।।



हैं दोस्तों का ये करम बहुत दोस्तों।

मुस्कुराते हैं उनकी सोहबत में हम।।



उनको नहीं है कोई आदत बुरी।

कब आएंगे उनकी आदत में हम।।



क्यों ना मिलाएं खुदा से नज़र।

क्यों सर झुकाएं इबादत में हम।।



देख-भाल के सब गलत ही हुआ।

अब कुछ करेंगे शरारत में हम।।



हमें कब मिलेगा कोई हम-नफ़स।

कब तक जियेंगे यूँ फुरक़त में हम।।



आईने देखा तो जाना यारों हमने ये।

बनाए गए हैं बड़ी उजलत में हम।।



ठुकरा दिया था माज़ी में उसे।

अब रो रहे हैं नदामत में हम।।

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