Thursday, 21 June 2018

मेरी प्रिये को नेता होना था | अंकित आनंद।


बिहार के भागलपुर से ताल्लुकात रखने वाले अंकित से मेरी पहली मुलाक़ात इंदौर में ही हुई। कब और कहाँ, मुझे याद नहीं। इससे मेरी हालिया याददाश्त का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। अंकित लेखक बाद में है, एक पाठक और श्रोता पहले है। उनकी इसी आदत के मैं और मेरे कई साथी शायर कायल हैं। मुहब्बत और सियासत के साथ-साथ अंकित तंज-ओ-मिज़ाह की शायरी भी करते हैं। आज आपके सामने उनकी जानिब से एक नज़राना मेरे ब्लॉग के जारिये।


"मेरी प्रिये को नेता होना था"

प्रिये तुम्हें भी नेता होना था।
सोनिया, शीला या जयललिता होना था।

राजनीति अच्छा कर लेती हो।।
दिल देकर दिमाग चलाती, 
काफी मीठा तुम कह  लेती हो।। 

भीड़ उमड़ता नेता के पीछे, 
तुम अकेले कब रहती हो।। 
काफी मुश्किल है तुमसे मिलना
पूरी CM लगती हो।। 

चपड़ चपड़ उतना ही करती, 
नेता जी के भाषण जैसी लगती हो। 
तुम जब जब मुझसे बातें करती, 
मेरे इर्द- गिर्द चुनाव जैसी लगती हो।। 

काफी मुश्किल है तुमसे मिलना, 
पूरी CM लगती हो।। 

प्रिये पॉकेट ढीला करवाना, 
कोई घोटाले सी लगती हो।। 
सरप्राइज़ ऐसे  देती हो, 
मार्केट  की नई नोट सी लगती हो।। 

मजाक के जब मूड  में आती, 
लालू यादव  लगती हो।। 

नया यार मिलते ही तुम तो, 
धोखा - धोखा ही देती हो।। 
प्रिये  तुम्हें तो नेता होना था, 
बिहार की CM  लगती हो।। 

प्रिये जब तुम सब्जी लेने जाती, 
टमाटर नीचे रखकर प्रिये, 
लौकी ऊपर रखती हो। 
इन सारी हरकतों से तुम, 
राहुल गांधी  लगती हो।। 

प्रिये कॉलेज जो तुम भी जाती, 
वैसे तो लेक्चर बंक करती हो। 
कभी-कभी जो पढ़ाई की बातें करती, 
स्मृति ईरानी लगती हो।। 

प्रिये  तुम आसानी से, 
जब कुछ मुझ से हथियाती हो। 
तब तुम लोकसभा वाली, 
हेमा मालिनी लगती हो।। 

और कठोर होकर प्रिये, 
जब कट्टरता दिखलाती हो। 
तब तुम पूरे तरीके वाली, 
बाबा योगी लगती हो।। 

ये जो चिकनी चुपड़ी बातों से तुम,
लोगों को वश में करती हो। 
तब तुम देश की मेरे, 
पी०एम० मोदी लगती हो।। 

प्रिये प्रेम को प्रेम रहने दो, 
राजनीति प्रेम में दूरी रहने दो। 
सियासत छोड़ो प्रेमी बन जाओ। 
क्योंकि आज भी मुझको पुरानी वाली, 
जयाप्रदा तुम लगती हो।।

Keep Visiting!

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