Tuesday, 24 April 2018

तू ख़ुदा का मोजज़ा।



कहाँ है तेरा नूर मौला, दर्द में क्यूँ हर सदा है।

रिन्द क्यूँ सब बन गए हैं?, भर रहा क्यूँ मैकदा है।।



उस आदमी से जाननी है जीस्त जीने की अदा।

जो साहिलों से कागजों की कश्तियाँ बहा रहा है।।

    

रुख़सार, लब, गेसू, निगाह, दिलसोज़ सब के सब।

तू अदाई शायरी की, तू ख़ुदा का मोजज़ा है।।



तेरे होने और ना होने में है फ़र्क़ इतना।

पास थी तो शाद था दिल, दूर है तो ग़मज़दा है।।



वो भी चुप है, मैं भी चुप हूँ, फ़िर सितम है ये।

मैं भी हूँ मानूस उससे, वो भी मुझसे आशना है।।



आपसे और आपसे एक सवाल है मेरा।

वो आदमी जो बे-सुरा है, वो क्यूँ गाना गा रहा है।।



उस शख्स को जाके ये बताओ, है ख़ुदा ज़िंदा।

वो पगला बुत बना रहा है, उस पर माला चढ़ा रहा है।।



ख़ुदा नहीं है कहकर बैठा सोचने प्रद्युम्न।

आबजू हैं देन किसकी? अब्र कौन बना रहा है?

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