Saturday, 23 June 2018

तुम्हें पता तो है ना | निशांत सिंह ठाकुर।


Welcome to this very new section of Prcinspirations Here you will get to read some of the very interesting and beautiful poems and stories we received from our readers.

The Following poem is by Nishant Singh Thakur. An Engineer from Bhopal, Madhyapradesh

निशांत-इसका अर्थ होता है निशा का अंत,निशा यानि रात। बाकी अगर एक अलग मतलब निकाला जाए तो नि-शांत। दोस्तों और घरवालों के लिए वो जो अशान्त हो, स्थिर न हो।  और है भी कुछ ऐसा ही। भोपाल से अभियांत्रिकी का छात्र होने के साथ साथ पढ़ने,लिखने और घूमने में रुचि रखता हूं। आशा करता हूँ की मेरी यह कविता आपको पसंद आएगी।

तुम्हे पता तो है ना ?

ये जो मैं शब्दों में स्नेह को पिरोता हूं,
जिन्हें तुम सिर्फ शब्द समझकर छोड़ देती हो,
या कुछ कहती भी हो,
फिर रुख मोड़ लेती हो,
मुझे अच्छा नहीं लगता,
तुम्हें पता तो है ना ?

मैं तो बस खोया रहता हूं,
ख्यालों में तुम्हारे
ये जो तुम आती हो ख्यालों में,
किसी और के साथ,
मुझे अच्छा नहीं लगता,
तुम्हें पता तो है ना ?

मैं रहता हूं ख़फ़ा तुम्हारी किसी बात से,
तुम पास आती हो थोड़ा सा मुस्कुराती हो,
और बस चली जाती हो,
मैं खो जाता हूं फिर से तुम्हारी मुस्कराहटों में,
फिर ख़फा रहता भी हूँ  तो अपने आप से,
तुम्हें पता तो है ना ?

तुम कुछ कहती हो कुछ भूल जाती हो,
कुछ बताती हो कुछ छुपाती हो,
तुम्हारी उन अनकही बातो में,
कई बार अपना नाम ढूंढता हूँ ।
तुम्हें पता तो है ना ?

एक स्वप्न है या जन्नत है ये,
कि तुम आती तो हो 
कुछ देर रुकती भी हो,
फिर गायब हो जाती हो,
मैं रहता हूं वहीं
औऱ कई बार जीता हूं उस लम्हे को
तुम्हे पता तो है ना ?

ये जो तुम बालों को चेहरे से हटाती हो,
थोड़ा शर्माती थोड़ा मुस्कुराती हो,
या आंखों से मुझे रिझाती हो, 
ये भी आदत है तुम्हारी ?
या अनजान हो मेरे जज़्बातों से
शायद..
ये सोचकर हर बार तुम्हे माफ कर देता हूं
तुम्हे पता तो है ना ?


Keep Visiting!

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